Thursday, October 29, 2009

खामोशी क्या खुद खामोश होती है? (Is silence silent in itself?)

खामोशी क्या खुद खामोश होती है!!

सुबह की किरण जब अंधियारे को
चिर पूरी दुनिया को रोशन करती है
बेचैन फूल सारे खिल उठते हैं

पंछियाँ चेह्चेहाने लगती हैं
टीम टीम तारें सब घबरा
कहीं दूर भाग जाती हैं

चेहेक उठती है दुनिया
और साथ जाग उठते हैं
ये दुनिया वाले

फूल अपनी पंखुडियां हिला
मुस्कुराती निखर उठती हैं, और लगती हैं
करने हवासे कितनी सारी बातें

दूर गगन मैं सूरज सीना तान
खडा हो जाता है, उसे देख लोग
अपने काम मैं निर्लिप्त हो जाते हैं

धीरे धीरे शाम को जब नशा चढ़ने लगता है
झूम झूम के वह सारे जगपे
अपने भांग का रश चढाते जाता है

उसकी मादिरा व्याकुल किसी मन् को
मदहोश कर जाती है, सन्नाटे की तलाश मैं
वह मन् दूर गगन् को ताकता रेहता है

ढलते सूरज के दुपट्टे मैं
मुहं छुपाकर उसकी नज़रें
तन्हाई से गुफ्तगू करती हैं

तब मन् के सागर मैं उथल पुथल
सी होने लगती हैं, ये मन् बिना मुहं खोले
अपने भाव से सारी फ़िज़ा से बातें करती हैं

उस खामोशी के भंवर मैं
बस एक ही ख़याल आता हैं
बस बार बार एक ही सवाल आता है

खामोशी क्या खुद खामोश होती है?

मोर को जैसे काले बादल का
चंद्रमा को जैसे काली रात का
मुझे इंतज़ार है उसी तरह इस सवाल के जवाब का


फिर मिलते हैं अगले ब्लोग़ मैं...
♥ ~ मुस्कान

4 comments:

Anonymous said...

roopa bajaj - Hey Hey.. I dint know i was a roomie of a gr8 writer!!.. Phew... its U Gayatri!!..Feb 16

Anonymous said...

Umesh Zemse - to continue with u Mili..chek this..
सुबह सुबह जब वो
अपने चेहरे पे पानी लेती हैं
लगता हैं मानो हज़ारो
फुल्लों से खुश्बू लहराती हैं !Feb 17

KhushiG said...

Gayatri Gouda - @Umesh: Aare.. aap to shayar bann gaye.. Kya baat hai..!! Lage raho..EditFeb 17

Anonymous said...

Umesh Zemse - I am inspired by your shayari dost....Feb 18

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